Sadhana Shahi

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बहू या बंधुआ मज़दूर (कहानी)प्रतियोगिता हेतु25-Apr-2024

बहु या बंंधुआ मज़दूर (कहानी) प्रतियोगिता हेतु

महेश 2 वर्ष से दुबई में रह रहा था घर पर उसके माता-पिता, पत्नी सीमा और उसके दो छोटे भाई-बहन बहन थे। उसकी पत्नी पूरे समय बड़े ही शिद्दत से सास- ससुर, देवर-नंद की सेवा करती, घर का सारा काम करती, किंतु उसे उस घर में परिवार के एक सदस्य का दर्ज़ा नहीं मिल पाया था। शादी के 5 वर्ष हो गए थे लेकिन वह उसे घर के लिए एक दूसरे घर से आई हुई लड़की ही थी।

2 वर्ष पश्चात महेश के आने का दिन क़रीब आया पूरा घर महेश के आने का इंतज़ार कर रहा था। सीमा भी महेश के आने का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी, लेकिन वह अपने उस इंतज़ार को किसी को दिखा नहीं सकती थी। क्योंकि उस घर में उसे ख़ुश होकर चहकने का अधिकार नहीं था। खुश होकर चहकने का मतलब था बेशर्मी, बेहयाई। अतः सीमा मन ही मन खुश तो बहुत थी किंतु उस ख़ुशी को अपने अंतर्मन मन में ही दबा कर रखी थी।

अंततः वह दिन भी आ गया जब महेश 2 साल के पश्चात अपने परिवार में आया। महेश जब आया तो अपने माता-पिता,भाई- बहन के पास बैठा। सीमा रसोई में काम कर रही थी और इंतज़ार में थी कब उसका महेश से मिलना होगा। महेश बैठकर माता-पिता से बातें कर रहा था। वह सभी के लिए कपड़े और अपनी मम्मी के लिए सोने की एक चेन लेकर आया हुआ था। उसने अपना बैग खोला और अपने छोटे भाई-बहन को, पिताजी को, अपने माता जी को उनके कपड़े दिए और अपनी मांँ को कपड़ों के साथ में चेन भी दिया। किंतु उसकी माँ को उसके कपड़े ,गहनों की ख़ुशी से ज्यादा इस बात की चिंता थी कि महेश सीमा के लिए क्या ले आया है! उसकी मांँ ने पूछा सीमा के लिए भी कुछ लाया ही होगा? महेश ने सकुचाते हुए कहा हांँ लाया हूंँ आख़िर वह भी तो घर की सदस्य है। तभी माँ ने कहा घर की सदस्य नहीं है वह दूसरे घर की आई हुई है।( शायद वो यह भूल गई थी कि वह भी दूसरे ही घर की आई हुई हैं)महेश अपनी मांँ की बात को नहीं काटा और हाँ में सर हिला दिया। तब महेश की माँ ने कहा दिखा देखूँ तो उसके लिए क्या लाया है?

तब महेश ने एक सस्ती सी साड़ी और एक पायल निकाल कर माँ को दिखाया। मांँ देखकर बोली ठीक है, बढ़िया तो है। साड़ी भी हो गया जेवर भी हो गया। महेश फिर से हाँ में सर हिलाया। और साड़ी और पायल को बैग में रख लिया।

रात को महेश सीमा के कमरे में गया। महेश को देखते ही सीमा महेश से ऐसे लिपट गई कि छोड़ने का नाम ही नहीं ले रही थी। महेश ने उसे बड़े प्यार से अपने से अलग किया, बेड पर बिठाया और पूछा तुमने देखा मैं सबके लिए कुछ ना कुछ ले आया हूंँ तुम अपने लिए नहीं पूछोगी क्या लाया हूँ।

सीमा ने कहा आप आ गये और मुझे क्या चाहिए! सब कुछ तो है मेरे पास। महेश ने अपना बैग खोला और उसमें से जो साड़ी और पायल उसने माँ को दिखाया था उसके अलावा एक और अच्छी सी साड़ी और सोने का कंगन निकालकर सीमा को दे दिया और बोला अब बस जल्दी से इसे पहन कर दिखा दो। देखूँ मेरी जान कैसी लग रही है!

सीमा ने कहा मांँ के लिए तो आप सिर्फ़ एक साड़ी और चेन ले आए और मेरे लिए दो साड़ी,कंगन और पायल। आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था। आपको मांँ के लिए दो ले आना चाहिए था।

महेश ने बोला अरे सीमा! माँ बूढ़ी हो गई हैं और फिर वो अपने पसंद की चीज़ें ख़ुद भी खरीद लेती हैं। पापा भी ला देते हैं, मैं भी ला देता हूँ। लेकिन तुम्हारे लिए मेरे और तुम्हारे मांँ-बाप के अलावा कोई कुछ भी नहीं लाता है। और मैं भी कितना लाता हूंँ 2 साल में एक बार।

तुम्हारी अभी पूरी ज़िंदगी बची है। तुम मेरी पत्नी हो, तुम्हारा ध्यान रखना, तुम्हारे शौक पूरे करना मेरा फ़र्ज़ है, जो मैं बिल्कुल नहीं कर पाता हूँ। अब बस देर मत करो मुझे जल्दी से पहनकर दिखाओ। सीमा ने कहा हाँ यह सब ठीक है, मैं आपकी पत्नी हूंँ लेकिन वो आपकी मांँ हैँ, उन्होंने आपको जन्म दिया है, आपकी परवरिश की हैं और मुझसे आपकी शादी की हैं।यदि वो न होतीं तो आप मुझसे कभी ना मिल पाते। अतः आप इस कंगन को रख दीजिए और 15 दिन बाद ही माताजी का जन्मदिन आने वाला है तब आप उनको यह कंगन तोहफ़े के तौर पर दे दीजिएगा।

महेश सीमा को एकटक देख रहा था, देख रहा था और देखते ही जा रहा था। वह सोच रहा था किस मिट्टी की तुम बनी हो सीमा जिस मांँ ने 5 साल में तुम्हें अपने घर का सदस्य नहीं समझा, तुम उसी माँ को अपना तोहफ़ा देने के लिए कह रही हो। बड़ा खु़श किस्मत हूंँ मैं जो मुझे तुम्हारे जैसी पत्नी मिली।

सीमा ने कहा, क्या सोच रहे हैं ?कुछ बोलेंगे, महेश ने कहा नहीं कुछ नहीं यही सोच रहा हूंँ मेरी पत्नी कितनी बुद्धू है। सीमा ने कहा, बस- बस मुझे चने की झाड़ पर मत चढ़ाइए।

तब महेश ने कहा, सीमा यह कंगन मैं तुम्हारे लिए लाया हूंँ तुम इसे रख लो। मैं मांँ को उसके जन्मदिन के दिन दूसरा तोहफा दे दूंँगा।

महेश सोच रहा था आज तक माँ ने सीमा को अपनी बहू नहीं समझा उसे लगता है उसने सीमा की शादी मुझसे कर दी और बस वो बन गई मांँ की बहू। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है मित्रों। कोई लड़का किसी लड़की को ब्याहकर अपने घर लेकर आए, उसे बँधुआ मज़दूर की तरफ सिर्फ़ दो वक्त की रोटी देकर पूरे दिन काम कराए और कहे वह हमारे घर की बहू है। नहीं, वह हमारे घर की बहू नहीं वह तो हमारे घर के आया बनकर रह जाती है।

हम लड़के वाले एक लड़की से जब शादी करते हैं तो उससे उसके मांँ-बाप, भाई- बहन, गली- मोहल्ला, सखी- सहेली, पसंद-नापसंद सब कुछ छीन लेते हैं। और यहांँ ससुराल में आकर हम देते क्या हैं उसे ढेर सारी जिम्मेदारियांँ, उदासी, निराशा,बेगार और फिर कहते हैं वह हमारी बहू है।

नहीं वो हमारी बहु बिल्कुल भी बहू नहीं है। यदि हम किसी लड़की को अपनी बहू बनाकर ले आते हैं तो हमें वो सब कुछ देना चाहिए जो उससे पीछे उस छूट गया है। यदि हम ऐसा करने में सफ़ल हो जाते हैं तभी एक लड़की हमारे घर की बहू है अन्यथा वह हमारे घर की एक बंँधुआ मजदूर से अधिक कुछ भी नहीं होती है।

वह हमारे घर में अपने सपनों को तोड़कर जीती है और टूटे हुए सपनों के साथ ही दुनिया को अलविदा कह कर चली जाती है।

साधना शाही, वाराणसी

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5 Comments

Babita patel

28-Apr-2024 11:02 AM

Superb story line

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बहुत ही खूबसूरत और मार्मिक कहानी। काश! वर्तमान परिदृश्य में हर सास बहू के साथ सही व्यवहार करते हुए अपनी बेटी की तरह उसे अपनाकर, समुचित सम्मान दे पाते।

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Mohammed urooj khan

25-Apr-2024 11:38 PM

👌🏾👌🏾👌🏾

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